लेखनी कविता - जाग-जाग सुकेशिनी री! -महादेवी वर्मा

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जाग-जाग सुकेशिनी री! -महादेवी वर्मा जाग-जाग सुकेशिनी री! अनिल ने आ मृदुल हौले  शिथिल वेणी-बन्धन खोले  पर न तेरे पलक डोले  बिखरती अलकें, झरे जाते  सुमन, वरवेशिनी री! छाँह में अस्तित्व ...

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